Spy your Love | Spiritual Love | VashikaranGuru | Real Love Stories | Love Relationship Advice |Get your ex back
मेरे कॉलेज की लड़की
अपने ही कॉलेज की लड़की से, मै भी इश्क फरमाता हूँ,
मै कुछ कहूँ तो वो कुछ कह न दे, बस यही सोच घबराता हूँ,
अपने ही कॉलेज की लड़की से ..... चलती है
जब वो घूम-घूम, हिरनी सी दिखाई देती है,
जब गाए कुछ वो राग-बेराग कोयल-सी सुनाई देती है,
बस यही सोच बिस्तर पर में अंगड़ाई लेता रहता हूँ,
अपने ही कॉलेज की लड़की से .....
घनघोर घटाओं-सी जुल्फें, जब उसकी लहराने लगती हैं,
सावन के मौसम में जैसे, रिम-झिम बूँदें गिर पड़ती हैं,
में भिगोकर खुद को उन बूंदों में, मन-ही-मन गाता जाता हूँ,
अपने ही कॉलेज की लड़की से .....
सामने न हो अगर वो मेरे दर्द तन्हाई देती है,
सामने हो तो कुछ कह न पाने की, उलझन दिखाई देती है,
में कुछ कहूँ भी गर, तो कैसे कहूँ, यही सोच रुक जाता हूँ,
अपने ही कॉलेज की लड़की से .....
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
राज गहरे कई
ये फिजाएं खोलती हैं राज गहरे कई
इस कली में बंद हैं नादान भौंरे कई
हम तो आशिक हैं हमारा क्या बहल जाएँगे
आपके दामन पे हैं ये दाग गहरे कई
देर तक खामोश-सी रोटी रही जिंदगी
छूटते हैं जो यहाँ पर थे सहारे कई
इस जहाँ की दौलतें बेकार होने लगीं
हाथ फैलाए खड़े उसके दुआरे कई
जुल्म कितने बढ़ गए आवाज होती नहीं
अब यहाँ रहने लगे गूंगे व बहरे कई
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
किसी की याद में
किसी याद में रोती चली गई
खिज़ां भी बहार होती चली गई उम्र के संग सयानी हुई पीड़
खुद चारागार होती चली गई
फूल की उम्र ज्यों आई करीब
कलियाँ करार खोती चली गयी
इन अंधेरों को पनाह दे कर
रात बदनाम होती चली गई
बोझ ग़रीब के मूलो-सूद का
कई पीढियां ढोती चली गई
क़ाबे-काशी को शक्ल देने में
इंसानियत खोती चली गई
दिल में बेदार हुई जब उम्मीद
नाउम्मीदी सोती चली गई
टीस की सूई दे गया कोई
आँखें लड़ियाँ पिरोती चली गई
पहाड़ों के पीहर से बिछड़ नदी
पिया समंदर की होती चली गई
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------
संगम की धारा हो जाएं
मर्यादा के बंध छोड़कर
सारे ही अनुबंध तोड़कर कुछ आंसू बह रहे तुम्हारे
कुछ आंसू बह रहे हमारे
दोनों के आंसू मिलकर के
एक नया इतिहास बनाएं
इतने पावन बनें की जैसे
संगम की धारा हो जाएं
आँखें तो आंसू की गागर
करुणा का जिसमे सागर है
आँसू से अभिसिंचित होता
भावों का आखर-आखर है
अपमानित कर दिया अगर तो
आँसू अंगारा हो जाएँ
इतने पावन बनें की जैसे
संगम की धारा हो जाएं
आँसू कभी बाहें सबरी के
आंसू कभी बहाए मीरा
आंसू में ही प्रेम उमड़ता
आंसू में रह रहा कबीरा
मिलें प्यार के शिलाखंड तो
ये आँसू गारा हो जाएं
इतने पावन बनें की जैसे
संगम की धारा हो जाएं
कभी देवकी के आँसू ने
भेजा यहाँ सुदर्शन धारी
सोने की लंका पर जैसे
सीता के थे आंसू भारी
कभी बहें ये चुपके-चुपके
या फिर बंजारा हो जाएँ
इतने पावन बनें की जैसे
संगम की धारा हो जाएं
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
तुमसे मिलकर
तुमसे मिलकर जीने की चाहत जागी
प्यार तुम्हारा पाकर ख़द से प्यार हुआ
तुम औरों से कब हो,तुमने पल भर में
मन के सन्नाटों का मतलब जान लिया
जितना मैं अब तक ख़द से अन्जान रहा
तुमने वो सब पल भर में पहचान लिया
मुझपर भी कोई अपना ह्क़ रखता है
यह अहसास मुझे भी पहली बार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़द से प्यार हुआ
ऐसा नहीं कि सपन नहीं थे आँखों में
लेकिन वो जगने से पहले मुरझाए
अब तक कितने ही सम्बन्ध जिए मैंने
लकिन वो सब मन को सींच नहीं पाये
भाग्य जगा है मेरी हर प्यास क
तप्ति के हाथों ही खुद सतकार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़द से प्यार हुआ
दिल कहता है तुम पर आकर ठहर गई
मेरी हर मजबूरी, मेरी हर भटकन
दिल के तारों को झंकार मिली तुमसे
गीत तुम्हारे गाती है दिल की धड़कन
जिस दिल पर अधिकार कभी मैं रखता था
उस दिल क हाथों ही अब लाचार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर खुद से प्यार हुआ
बहकी हुई हवाओं ने मेरे पथ पर
दूर-दूर तक चंदन-गंध बिखेरी है
भाग्य देव ने स्वयं उतरकर धरती पर
मेरे हाथ में रेखा नई उकेरी है
मेरी हर इक रात महकती है अब तो
मेरा हर दिन जैसे इक त्यौहार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर खुद से प्यार हुआ
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
एक कोना खाली दिल का मेरे
एक कोना खाली दिल का मेरे,
याद तुझे फिर करता है तेरी मंद-मंद मुस्कानों पर,
दिल मेरा आज भी मरता है,
तेरी शोख अदाओं की चुहिया,
दिल आज भी तारीफ़ करता है,
तेरे इतराने इठलाने पर,
दिल बाग़-बाग़ हो उठता है,
बुलबुल सी तेरी चहक हो ही,
सुनने को दिल तरसता है,
दौड़ के आकर लगना गले,
और धीरे से कहना 'पापा'
फिर चूमना मेरे गालों को,
और आँखों से शरारत करना,
अब कब ये सपना सच होगा,
इंतजार दीवाना करता है,
चिपक के सीने से मेरे,
तेरा सपनों में खो जाना,
पर आज इन काली रातों में,
दिल हर पल धड़कन गिनता है,
तेरे नाजुक नाजुक हाथों से,
गालों को सहलाना मेरे,
तेरे छोटे छोटे हाथों को,
फिर चूमने को दिल करता है,
कहाँ खो गई मेरी चिड़िया,
दिल तुझ से मिलने को करता है,
एक कोना खाली दिल का मेरे,
याद तुझे फिर करता है .....
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
क्या कहता
खुदा जाने में क्या होता, जो कहता में क्या होता,
सही के लिए क्या कहता, गलत के लिए क्या कहता,
रहती है दूर क्या कहता, मिलने को ही क्या कहता,
मिलते रहना ही क्या कहना, क्या है दिल में क्या कहता,
सूरज और चंदा क्या कहता, दोनों का वीरा क्या कहता,
तेरे संग दिन क्या कहता, तेरे संग रातें क्या कहता,
तुझ बिन जीवन क्या कहता, तुझ बिन मौसम क्या कहता,
तुझ बिन तारें क्या कहता, तुझ बिन इतवारें क्या कहता,
तेरे जाने पर क्या कहता, तेरे आने पर क्या कहता,
पूरब से पश्चिम क्या कहता, उत्तर से दक्षिण क्या कहता,
आखिरी कदम है क्या कहता, जीवन मरण है क्या कहता,
जन्नत से पृथ्वी क्या कहता, मौला और चिश्ती क्या कहता,
लोग और जगहें क्या कहता, यादें और बातें क्या कहता,
हंसी मजाक जब क्या कहता, हृदय वेदना अब क्या कहता,
तुझसे कहने को क्या कहता, तुझसे सुनने को क्या कहता,
कहता तो बस कहता रहता, 'निर्जन' दिल से दिल कहता है .....
----------------------------------------------------------------------------------------------------------
बिन घरनी घर भूत का डेरा
बिन घरनी घर, भूत का डेरा,
ये झूठ नही, सच्चाई है ।
पत्नी के घर मे, नही रहने से,
तो उसकी याद ,बहुत ही सताती है ॥
पति-पत्नी मे होते तकरार बहुत,
इससे रिश्तों मे ,प्यार और बढ़ता है ।
तू-तू ,मै-मै, जब होता है कभी,
तो आदमी, प्यार और करता है ॥
सच माने तो वह केवल ,पत्नी ही नही,
वो हमारे जीवन की ,अधिकारी है ।
रखती है हमारा, ध्यान सदा,
हम भी उसके, आभारी हैं ॥
ये भी कभी भी, न भुलें,
कि उसकी रूप की, तीन निशानी है ।
सुबह मां और दिन मे है बहन ,
और रात को वो, दिलजानी है ॥
पर गृहिणी यदि, समझदार मिली,
तो उस घर मे, खुशियां ही खुशियां हैं ।
पर कहीं अगर, दुखदायी सी मिली,
तो वहां बस दुख की ही, केवल बगिया है ॥
बिन घरनी घर, भूत का डेरा....
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
तुम्हारी आँखों में
जिस्म पर उभरी लकीरें
गवाह हैं
उन रास्तों की
जिनसे होकर गुजरा हूँ
और बार-बार
असफल
फिर फिर लौटा हूँ
तुम्हारे पास
याचना के लिए
प्रेम की छाँव की
अपने दंभ में
आगे निकल जाता हूँ
तुम्हें पीछे छोड़
लेकिन
वक्त से टकराकर
लौटना पड़ता है
तुम्हारे पास
ऊँगली थामने
यूँ ही नही गुजरा वक्त
यूँ ही नही उभरी लकीरें
चेहरे पर
शरीर पर
ये गवाह हैं
उन पलों की
जब तुमने थामा है
मेरा हाथ
जो कांपने लगे थे पाँव
तुम हमेशा ही
एक उम्मीद थी
मै ही आँख मूंद रहा
अपने सपनों से
जो हमेशा तैरते रहे
तुम्हारी आँखों में
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------
जब यह दुनिया सो जाती है
शायद तुम से पूर्व जनम का
मेरा कोई नाता होगा इसीलिए तुमसे मिलने पर
मन में हलचल हो जाती है
मै रातों को तब जगता हूँ
जब यह दुनिया सो जाती है
दिल के काग़ज पर मोती-सा
अक्षर-अक्षर तुम्हें लिखा है
हर मात्रा में याद तुम्हारी
शब्दों में मकरंद दिखा है
तन के विंध्याचल को जैसे
प्रीति हिलोर भिगो जाती है
मै रातों को तब जगता हूँ
जब यह दुनिया सो जाती है
होठ गुलाबी, नयन शराबी
पलकों पर सपना सोता है
तुमसे वह रिश्ता है जो
सरिता का सागर से होता है
मेरा आँगन दिवस अमावस
धवल चाँदनी धो जाती है
मै रातों को तब जगता हूँ
जब यह दुनिया सो जाती है
गंध तुम्हारी अंतस मन को
रोज बाबरी कर देती है
यादों की ज्यों धुप गुनगुनी
देह सांवरी कर देती है
साँसों की श्यामल माला में
राधा छंद पिरो जाती है
मै रातों को तब जगता हूँ
जब यह दुनिया सो जाती है
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा
पहले मन में पीड़ा जागी
फिर भाव जगे मन-आँगन में जब आँगन छोटा लगा उसे
कुछ ऐसे सँवर गई पीड़ा
क़ागज़ पर उतर गई पीड़ा…
जाने-पहचाने चेहरों ने
जब बिना दोष उजियारों का
रिश्ता अँधियारों से जोड़ा
जब क़समें खानेवालों ने
अपना बतलाने वालों ने
दिल क दरपन पल-पल तोड़ा
टूटे दिल को समझाने को
मुश्किल में साथ निभाने को
छोड़ के सारे ज़माने को
हर हद से गुज़र गई पीड़ा…
ये चाँद सितारे और अम्बर
पहले अपने-से लगे मगर
फिर धीरे-धीरे पहचाने
ये धन-वैभव, ये किर्ति-शिखर
पहले अपने- से लगे मगर
फिर ये भी निकले बेगाने
फिर मन का सूनापन हरने
और सारा ख़ालीपन भरने
ममतामयी आँचल को लेकर
अन्तस में ठहर गई पीड़ा
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा…
कुछ ख़्वाब पले जब आँखों में
बेगानों तक का प्यार मिला
यूँ लगा कि ये संसार मिला
जब आँसूं छ्लके आँखों से
अपनों तक से प्रतिकार मिला
चुप रहने का अधिकार मिला
फिर ख़ुद में इक विशवास मिला
कुछ होने का अहसास मिला
फिर एक खुला आकाश मिला
तारों-सी बिखर गई पीड़ा
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा…
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये मन का कोना कोना दु:खमय सागर सा भर आये बार-बार
रो पड़े आँख रिमझिम सावन सी ढुलक -ढुलक जार -जार
आनंदमय छंद, गीत ,गंध का जीवन प्रवाह भी आज ठहर जाए
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
दहकती हुई रेत के मन सांस में सावन कि व्याकुलता भर दो
रात कि गुनगुनाती हुई चांदनी पर ,सुबकती हुई वेदना धर दो
नाचती उषा के घुँघरूओं कि धुन भी टूट कर बिखर जाये
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
अनमनी हो जाये दूज के चाँद की पहली अछूती वो तरुण किरण
बासंती मेघ के प्रथम स्पर्श को दे दिया जिसने अपना जीवन
छेड़ो वो प्रथम प्रणय स्पन्दन के विकल उददगार कि दिल भर आये
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
जल जाये अंतस कि आग से ,रोमंचित ,स्निग्ध ,मधुर ,मंद पवन
भेंटने नभ से चल पड़े तृषित वसुंधरा का करुण, व्यथित मन
पौंछने कुमुदनी के ढलकते आंसू ,चाँद भी आज जमीं पर उतर आये
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
सुनकर विरह का तान पपीहा भी गाने लगे पिहु-पिहु के गान
सुबक उठे तिमिर के वक्ष पर सोयी बेखबर यामिनी के मन प्राण
आद्र हो जाये गगन के तारे,हर दिशा कि आँख झर जाए
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये

अपने ही कॉलेज की लड़की से, मै भी इश्क फरमाता हूँ,
मै कुछ कहूँ तो वो कुछ कह न दे, बस यही सोच घबराता हूँ,
अपने ही कॉलेज की लड़की से ..... चलती है
जब वो घूम-घूम, हिरनी सी दिखाई देती है,
जब गाए कुछ वो राग-बेराग कोयल-सी सुनाई देती है,
बस यही सोच बिस्तर पर में अंगड़ाई लेता रहता हूँ,
अपने ही कॉलेज की लड़की से .....
घनघोर घटाओं-सी जुल्फें, जब उसकी लहराने लगती हैं,
सावन के मौसम में जैसे, रिम-झिम बूँदें गिर पड़ती हैं,
में भिगोकर खुद को उन बूंदों में, मन-ही-मन गाता जाता हूँ,
अपने ही कॉलेज की लड़की से .....
सामने न हो अगर वो मेरे दर्द तन्हाई देती है,
सामने हो तो कुछ कह न पाने की, उलझन दिखाई देती है,
में कुछ कहूँ भी गर, तो कैसे कहूँ, यही सोच रुक जाता हूँ,
अपने ही कॉलेज की लड़की से .....
------------------------------------------------------------------------------------------------------------

ये फिजाएं खोलती हैं राज गहरे कई
इस कली में बंद हैं नादान भौंरे कई
हम तो आशिक हैं हमारा क्या बहल जाएँगे
आपके दामन पे हैं ये दाग गहरे कई
देर तक खामोश-सी रोटी रही जिंदगी
छूटते हैं जो यहाँ पर थे सहारे कई
इस जहाँ की दौलतें बेकार होने लगीं
हाथ फैलाए खड़े उसके दुआरे कई
जुल्म कितने बढ़ गए आवाज होती नहीं
अब यहाँ रहने लगे गूंगे व बहरे कई
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
किसी की याद में
किसी याद में रोती चली गई
खिज़ां भी बहार होती चली गई उम्र के संग सयानी हुई पीड़
खुद चारागार होती चली गई
फूल की उम्र ज्यों आई करीब
कलियाँ करार खोती चली गयी
इन अंधेरों को पनाह दे कर
रात बदनाम होती चली गई
बोझ ग़रीब के मूलो-सूद का
कई पीढियां ढोती चली गई
क़ाबे-काशी को शक्ल देने में
इंसानियत खोती चली गई
दिल में बेदार हुई जब उम्मीद
नाउम्मीदी सोती चली गई
टीस की सूई दे गया कोई
आँखें लड़ियाँ पिरोती चली गई
पहाड़ों के पीहर से बिछड़ नदी
पिया समंदर की होती चली गई
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------
संगम की धारा हो जाएं

सारे ही अनुबंध तोड़कर कुछ आंसू बह रहे तुम्हारे
कुछ आंसू बह रहे हमारे
दोनों के आंसू मिलकर के
एक नया इतिहास बनाएं
इतने पावन बनें की जैसे
संगम की धारा हो जाएं
आँखें तो आंसू की गागर
करुणा का जिसमे सागर है
आँसू से अभिसिंचित होता
भावों का आखर-आखर है
अपमानित कर दिया अगर तो
आँसू अंगारा हो जाएँ
इतने पावन बनें की जैसे
संगम की धारा हो जाएं
आँसू कभी बाहें सबरी के
आंसू कभी बहाए मीरा
आंसू में ही प्रेम उमड़ता
आंसू में रह रहा कबीरा
मिलें प्यार के शिलाखंड तो
ये आँसू गारा हो जाएं
इतने पावन बनें की जैसे
संगम की धारा हो जाएं
कभी देवकी के आँसू ने
भेजा यहाँ सुदर्शन धारी
सोने की लंका पर जैसे
सीता के थे आंसू भारी
कभी बहें ये चुपके-चुपके
या फिर बंजारा हो जाएँ
इतने पावन बनें की जैसे
संगम की धारा हो जाएं
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
तुमसे मिलकर
तुमसे मिलकर जीने की चाहत जागी
प्यार तुम्हारा पाकर ख़द से प्यार हुआ
तुम औरों से कब हो,तुमने पल भर में
मन के सन्नाटों का मतलब जान लिया
जितना मैं अब तक ख़द से अन्जान रहा
तुमने वो सब पल भर में पहचान लिया
मुझपर भी कोई अपना ह्क़ रखता है
यह अहसास मुझे भी पहली बार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़द से प्यार हुआ
ऐसा नहीं कि सपन नहीं थे आँखों में
लेकिन वो जगने से पहले मुरझाए
अब तक कितने ही सम्बन्ध जिए मैंने
लकिन वो सब मन को सींच नहीं पाये
भाग्य जगा है मेरी हर प्यास क
तप्ति के हाथों ही खुद सतकार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़द से प्यार हुआ
दिल कहता है तुम पर आकर ठहर गई
मेरी हर मजबूरी, मेरी हर भटकन
दिल के तारों को झंकार मिली तुमसे
गीत तुम्हारे गाती है दिल की धड़कन
जिस दिल पर अधिकार कभी मैं रखता था
उस दिल क हाथों ही अब लाचार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर खुद से प्यार हुआ
बहकी हुई हवाओं ने मेरे पथ पर
दूर-दूर तक चंदन-गंध बिखेरी है
भाग्य देव ने स्वयं उतरकर धरती पर
मेरे हाथ में रेखा नई उकेरी है
मेरी हर इक रात महकती है अब तो
मेरा हर दिन जैसे इक त्यौहार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर खुद से प्यार हुआ
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
एक कोना खाली दिल का मेरे
एक कोना खाली दिल का मेरे,
याद तुझे फिर करता है तेरी मंद-मंद मुस्कानों पर,
दिल मेरा आज भी मरता है,
तेरी शोख अदाओं की चुहिया,
दिल आज भी तारीफ़ करता है,
तेरे इतराने इठलाने पर,
दिल बाग़-बाग़ हो उठता है,
बुलबुल सी तेरी चहक हो ही,
सुनने को दिल तरसता है,
दौड़ के आकर लगना गले,
और धीरे से कहना 'पापा'
फिर चूमना मेरे गालों को,
और आँखों से शरारत करना,
अब कब ये सपना सच होगा,
इंतजार दीवाना करता है,
चिपक के सीने से मेरे,
तेरा सपनों में खो जाना,
पर आज इन काली रातों में,
दिल हर पल धड़कन गिनता है,
तेरे नाजुक नाजुक हाथों से,
गालों को सहलाना मेरे,
तेरे छोटे छोटे हाथों को,
फिर चूमने को दिल करता है,
कहाँ खो गई मेरी चिड़िया,
दिल तुझ से मिलने को करता है,
एक कोना खाली दिल का मेरे,
याद तुझे फिर करता है .....
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
क्या कहता

सही के लिए क्या कहता, गलत के लिए क्या कहता,
रहती है दूर क्या कहता, मिलने को ही क्या कहता,
मिलते रहना ही क्या कहना, क्या है दिल में क्या कहता,
सूरज और चंदा क्या कहता, दोनों का वीरा क्या कहता,
तेरे संग दिन क्या कहता, तेरे संग रातें क्या कहता,
तुझ बिन जीवन क्या कहता, तुझ बिन मौसम क्या कहता,
तुझ बिन तारें क्या कहता, तुझ बिन इतवारें क्या कहता,
तेरे जाने पर क्या कहता, तेरे आने पर क्या कहता,
पूरब से पश्चिम क्या कहता, उत्तर से दक्षिण क्या कहता,
आखिरी कदम है क्या कहता, जीवन मरण है क्या कहता,
जन्नत से पृथ्वी क्या कहता, मौला और चिश्ती क्या कहता,
लोग और जगहें क्या कहता, यादें और बातें क्या कहता,
हंसी मजाक जब क्या कहता, हृदय वेदना अब क्या कहता,
तुझसे कहने को क्या कहता, तुझसे सुनने को क्या कहता,
कहता तो बस कहता रहता, 'निर्जन' दिल से दिल कहता है .....
----------------------------------------------------------------------------------------------------------
बिन घरनी घर भूत का डेरा
बिन घरनी घर, भूत का डेरा,
ये झूठ नही, सच्चाई है ।
पत्नी के घर मे, नही रहने से,
तो उसकी याद ,बहुत ही सताती है ॥
पति-पत्नी मे होते तकरार बहुत,
इससे रिश्तों मे ,प्यार और बढ़ता है ।
तू-तू ,मै-मै, जब होता है कभी,
तो आदमी, प्यार और करता है ॥
सच माने तो वह केवल ,पत्नी ही नही,
वो हमारे जीवन की ,अधिकारी है ।
रखती है हमारा, ध्यान सदा,
हम भी उसके, आभारी हैं ॥
ये भी कभी भी, न भुलें,
कि उसकी रूप की, तीन निशानी है ।
सुबह मां और दिन मे है बहन ,
और रात को वो, दिलजानी है ॥
पर गृहिणी यदि, समझदार मिली,
तो उस घर मे, खुशियां ही खुशियां हैं ।
पर कहीं अगर, दुखदायी सी मिली,
तो वहां बस दुख की ही, केवल बगिया है ॥
बिन घरनी घर, भूत का डेरा....
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
तुम्हारी आँखों में
जिस्म पर उभरी लकीरें
गवाह हैं
उन रास्तों की
जिनसे होकर गुजरा हूँ
और बार-बार
असफल
फिर फिर लौटा हूँ
तुम्हारे पास
याचना के लिए
प्रेम की छाँव की
अपने दंभ में

तुम्हें पीछे छोड़
लेकिन
वक्त से टकराकर
लौटना पड़ता है
तुम्हारे पास
ऊँगली थामने
यूँ ही नही गुजरा वक्त
यूँ ही नही उभरी लकीरें
चेहरे पर
शरीर पर
ये गवाह हैं
उन पलों की
जब तुमने थामा है
मेरा हाथ
जो कांपने लगे थे पाँव
तुम हमेशा ही
एक उम्मीद थी
मै ही आँख मूंद रहा
अपने सपनों से
जो हमेशा तैरते रहे
तुम्हारी आँखों में
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------
जब यह दुनिया सो जाती है
शायद तुम से पूर्व जनम का
मेरा कोई नाता होगा इसीलिए तुमसे मिलने पर
मन में हलचल हो जाती है
मै रातों को तब जगता हूँ
जब यह दुनिया सो जाती है
दिल के काग़ज पर मोती-सा
अक्षर-अक्षर तुम्हें लिखा है
हर मात्रा में याद तुम्हारी
शब्दों में मकरंद दिखा है
तन के विंध्याचल को जैसे

मै रातों को तब जगता हूँ
जब यह दुनिया सो जाती है
होठ गुलाबी, नयन शराबी
पलकों पर सपना सोता है
तुमसे वह रिश्ता है जो
सरिता का सागर से होता है
मेरा आँगन दिवस अमावस
धवल चाँदनी धो जाती है
मै रातों को तब जगता हूँ
जब यह दुनिया सो जाती है
गंध तुम्हारी अंतस मन को
रोज बाबरी कर देती है
यादों की ज्यों धुप गुनगुनी
देह सांवरी कर देती है
साँसों की श्यामल माला में
राधा छंद पिरो जाती है
मै रातों को तब जगता हूँ
जब यह दुनिया सो जाती है
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा
पहले मन में पीड़ा जागी
फिर भाव जगे मन-आँगन में जब आँगन छोटा लगा उसे
कुछ ऐसे सँवर गई पीड़ा
क़ागज़ पर उतर गई पीड़ा…
जाने-पहचाने चेहरों ने
जब बिना दोष उजियारों का
रिश्ता अँधियारों से जोड़ा
जब क़समें खानेवालों ने
अपना बतलाने वालों ने
दिल क दरपन पल-पल तोड़ा
टूटे दिल को समझाने को
मुश्किल में साथ निभाने को
छोड़ के सारे ज़माने को
हर हद से गुज़र गई पीड़ा…
ये चाँद सितारे और अम्बर
पहले अपने-से लगे मगर
फिर धीरे-धीरे पहचाने
ये धन-वैभव, ये किर्ति-शिखर
पहले अपने- से लगे मगर
फिर ये भी निकले बेगाने
फिर मन का सूनापन हरने
और सारा ख़ालीपन भरने
ममतामयी आँचल को लेकर
अन्तस में ठहर गई पीड़ा
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा…
कुछ ख़्वाब पले जब आँखों में
बेगानों तक का प्यार मिला
यूँ लगा कि ये संसार मिला
जब आँसूं छ्लके आँखों से
अपनों तक से प्रतिकार मिला
चुप रहने का अधिकार मिला
फिर ख़ुद में इक विशवास मिला
कुछ होने का अहसास मिला
फिर एक खुला आकाश मिला
तारों-सी बिखर गई पीड़ा
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा…
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये मन का कोना कोना दु:खमय सागर सा भर आये बार-बार
रो पड़े आँख रिमझिम सावन सी ढुलक -ढुलक जार -जार
आनंदमय छंद, गीत ,गंध का जीवन प्रवाह भी आज ठहर जाए
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
दहकती हुई रेत के मन सांस में सावन कि व्याकुलता भर दो
रात कि गुनगुनाती हुई चांदनी पर ,सुबकती हुई वेदना धर दो
नाचती उषा के घुँघरूओं कि धुन भी टूट कर बिखर जाये
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
अनमनी हो जाये दूज के चाँद की पहली अछूती वो तरुण किरण
बासंती मेघ के प्रथम स्पर्श को दे दिया जिसने अपना जीवन
छेड़ो वो प्रथम प्रणय स्पन्दन के विकल उददगार कि दिल भर आये
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
जल जाये अंतस कि आग से ,रोमंचित ,स्निग्ध ,मधुर ,मंद पवन
भेंटने नभ से चल पड़े तृषित वसुंधरा का करुण, व्यथित मन
पौंछने कुमुदनी के ढलकते आंसू ,चाँद भी आज जमीं पर उतर आये
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
सुनकर विरह का तान पपीहा भी गाने लगे पिहु-पिहु के गान
सुबक उठे तिमिर के वक्ष पर सोयी बेखबर यामिनी के मन प्राण
आद्र हो जाये गगन के तारे,हर दिशा कि आँख झर जाए
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये