Spy your Love | Spiritual Love | VashikaranGuru | Real Love Stories | Love Relationship Advice |Get your ex back
अनजान रहा अक्सर
दीदार का बस तेरे ईमान रहा अक्सर
इस प्यार से मेरे तू अनजान रहा अक्सर
बाजार में दुनिया के हर चीज तो मिलती है
तेरे हबीबों में भी धनवान रहा अक्सर
जिस वक्त दुनिया में था घनघोर कहर बरपा
उस वक्त भी रौशन ये शमशान रहा अक्सर
हर ओर इन गलियों में इक शोर सा मचता है
हाकिम का ही तो यह भी एहसान रहा अक्सर
मेरी मुरादों ने अपना रूप बदल डाला
ईमान के में नुकसान रहा अक्सर
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आँखों में
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रीत गए हैं प्रीत भरे पतीले
उलट गई है संस्कारों की थाली मन-मटके में नहीं भावों का पानी
आदर्शों का डिब्बा खाली-खाली
बासी हुई सुगंध सम्बन्धों की
रिश्ते हुए हैं ज़हर की प्याली
पावन नही रही अग्नि चूल्हे की
कुंठा के धुएं से घर-दीवारें काली
आँखें मुस्काती कुटिल मुस्काने
मुख का अभिवादन बन गाया गली
बिखरी आदर -सत्कारों की रंगोली
टूट गई मान मनुहारों की डाली
पेड़ों पर लोभ लालच की अमराई
उगी फ़सलो पर ग़द्दारी की बाली
विकसी दूषित विचारों की फुलवारी
फ़ैली पाप अधम की हरियाली
दया करुना के पक्षी न आ पते अन्दर
छल -कपट बन गया मन का माली
वासनाओं से भरा भौंरों का गुंजन
तितलियों मुख नहीं लाज़ की लाली
कच्चे पड़ गये प्रण के पत्थर
ढह गई इमारतें मिसालों वाली
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मेरा बचपन
जीवन की पथरीली, राहों में चलते चलते
जीवन की सुलगती, आग में जलते जलते
जीवन की कंटीली, चुभन में घुटते घुटते
याद आती है, सुकोमल बचपन की
कर्तव्यों की बेड़ी में, जकड़े जीवन में
याद आती है, उस स्वछंदता की
सुकोमल स्वच्छ बचपन, सुगंधों से भरा बचपन
पाप, पुण्य से मुक्त बचपन, अब घिर गया है अनेक
समस्याओं में जीवन, साँसों की डोर जुड़ गई
अश्रु की लड़ी में, हे ईश्वर! कब टूटेगी
ये अश्रु की लड़ी, हे ईश्वर! कब छूटेगी
ये दुखों की झड़ी, हे ईश्वर! कब फूटेगी
मुरझाए होटों पर हंसी, कब वापस आएगा
सलोना बचपन, हर ग़म हर दर्द से दूर
अनजाना खिलखिलाता, बचपन
कभी कभी नानी की कहानी, कभी माँ का वो आँचल
स्वर्ग से ज्यादा हसीन, था मेरा बचपन
एक धुंधली से छवि है, बचपन अब वो तेरी
खोजता जाता हूँ, कहाँ, छिप गया मेरा बचपन
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छिद्रित आत्मा
जीवन की विषम राहों पर
सीधी सड़क भी -
वक्र लगती है .....
या
वक्र एवं सीधापन
मिल जाता है
अजीब-सी
भ्रमात्मक स्थिति
बन जाती है, जब
रुआं-सा मन
हंस पड़ता है
कोई टीस
कचोट जाती है -
अन्तस से
बूंद-बूंद टपकती पीड़ा
ऐसे
की जैसे
छिद गई हो
आत्मा for more
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क्या वह तुमको रास न आया?
मैने तुमको ख़त भेजा था,
लेकिन कोई जवाब न आया,
क्या वह तुमको रास न आया?
बहुत दिनों के बाद मिले थे,
संबंधों के छंद लिखे थे,
स्मृतियों की सघन छाँव में,
आशाओं के सुमन खिले थे,
बहुत किया विस्तृत खुद को, पर
बाहों में आकाश न आया,
क्या वह तुमको रास न आया?
अवलोकित सपना झूठा था,
चाहत का अंकुर फूटा था,
मन से मन की बात न होती,
अंतस का दर्पण टूटा था,
महफ़िल में हैं बहुत लोग, पर
अपना कोई ख़ास न आया
क्या वह तुमको रास न आया?
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घायल तब-तब संबंध हुए
जब-जब टूटे मन के धागे
घायल तब-तब संबंध हुए घायल आँसूं की भाषा में
विरहन मीरा के छंद हुए
बिसरी यादों के गहनों से
मै तुम्हे अलंकृत करता हूँ
जो बीन प्यार की बज न सकी
स्वर देकर झंकृत करता हूँ
जो लिखे प्रीती के पृष्ठों पर
धूमिल सारे अनुबंध हुए
जब-जब टूटे मन के धागे
घायल तब-तब संबंध हुए
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बेवफ़ा तुम ना बनो
बेवफ़ा तुम ना बनो मेरे मुहब्बत की परी,
हमसे रुठी तो सनम मै तो कहा जाऊंगा! तेरी चाहत मे सजाए हुए है मै सपने,
अपने दिल को समझाने कहां जाऊंगा!!
कैसे हमने है बनाए सपनो का महल,
तू अगर लौ को लगाई तो ये जल जाएगा!
उनसे डरना ही था तो प्यार क्यो किया हमसे,
तू अगर डर सी गई प्यार ये मर जाएगा!!
मेरी कविता हो, शमा हो और शाने गजल,
तेरे मुखड़े सी किताबों को पढ़ता ही रहूं!
मेरी चन्दा हो ,साया हो ,दिल की धड़कन,
तेरी नटखट सी अदावों पर मै मरता रहूं!!
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कैसे-कैसे है लोग दुनिया मे
कैसे-कैसे है लोग दुनिया मे ,जो की झुठे ही प्यार करते है!
अपना मतलब निकालने के लिए,सारी दुनिया के यार बनते है!! कैसे-कैसे है लोग दुनिया मे..................
मेरे पहलू मे भी एक आया था,जो की मेरा बहुत अजनबी था!
पर मेरे पास मे वो रहते-रहते अब तक मेरा बहुत करीबी था!!
कैसे-कैसे है लोग..............
मुझे ऐसी उम्मीद थी भी नही कि मेरा ऐसा हाल कर देगा!
छोड़कर ऐसी हल मे मुझको ,वो, कोई दुसरा पकड़ लेगा!!
कैसे-कैसे है लोग दुनिया...................
मुझे सन्देह ऐसा होता था, ये मेरे साथ ऐसा कर देगे!
पर मेरे दिल मे ऐसा होता था,ये मुझे रोशनी से भर देगे!!
कैसे-कैसे है लोग दुनिया मे.....................
अब मुझे रोशनी-अधेरे मे फ़र्क महसुस अब तो होने लगा!
अब तो मेरी मौत और ही मुझसे,कैसे ये और दूर होने लगा!!
कैसे-कैसे है लोग दुनिया ..................
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अनजान रहा अक्सर
दीदार का बस तेरे ईमान रहा अक्सर
इस प्यार से मेरे तू अनजान रहा अक्सर
बाजार में दुनिया के हर चीज तो मिलती है
तेरे हबीबों में भी धनवान रहा अक्सर
जिस वक्त दुनिया में था घनघोर कहर बरपा
उस वक्त भी रौशन ये शमशान रहा अक्सर
हर ओर इन गलियों में इक शोर सा मचता है
हाकिम का ही तो यह भी एहसान रहा अक्सर
मेरी मुरादों ने अपना रूप बदल डाला
ईमान के में नुकसान रहा अक्सर
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आँखों में
बता ये कौनसा गम इज़्तराब है तेरी आँखों में
ज़रूर कोई अधूरा ख्वाब है तेरी आँखों में
क्यों कतरा-ऐ शबनम छलकाती रहती हैं हर वक्त
हो न हो कोई चेहरा गुलाब है तेरी आँखों में
जाने क्यों चाँद को भी नहीं देखा करते हो आजकल
यकीनन कोई दूजा महताब है तेरी आँखों में
लाख तैरना आये चाहे किसीको वो डूब जाएगा
दर्दो -गम का इक ऐसा गिर्दाब है तेरी आँखों में
नहीं पूछेंगे कैसे काटी तुमने इंतज़ार में उम्र
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उलट गई है संस्कारों की थाली मन-मटके में नहीं भावों का पानी
आदर्शों का डिब्बा खाली-खाली
बासी हुई सुगंध सम्बन्धों की
रिश्ते हुए हैं ज़हर की प्याली
पावन नही रही अग्नि चूल्हे की
कुंठा के धुएं से घर-दीवारें काली
आँखें मुस्काती कुटिल मुस्काने
मुख का अभिवादन बन गाया गली
बिखरी आदर -सत्कारों की रंगोली
टूट गई मान मनुहारों की डाली
पेड़ों पर लोभ लालच की अमराई
उगी फ़सलो पर ग़द्दारी की बाली
विकसी दूषित विचारों की फुलवारी
फ़ैली पाप अधम की हरियाली
दया करुना के पक्षी न आ पते अन्दर
छल -कपट बन गया मन का माली
वासनाओं से भरा भौंरों का गुंजन
तितलियों मुख नहीं लाज़ की लाली
कच्चे पड़ गये प्रण के पत्थर
ढह गई इमारतें मिसालों वाली
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मेरा बचपन
जीवन की पथरीली, राहों में चलते चलते
जीवन की सुलगती, आग में जलते जलते
जीवन की कंटीली, चुभन में घुटते घुटते
याद आती है, सुकोमल बचपन की
कर्तव्यों की बेड़ी में, जकड़े जीवन में
याद आती है, उस स्वछंदता की
सुकोमल स्वच्छ बचपन, सुगंधों से भरा बचपन
पाप, पुण्य से मुक्त बचपन, अब घिर गया है अनेक
समस्याओं में जीवन, साँसों की डोर जुड़ गई
अश्रु की लड़ी में, हे ईश्वर! कब टूटेगी
ये अश्रु की लड़ी, हे ईश्वर! कब छूटेगी
ये दुखों की झड़ी, हे ईश्वर! कब फूटेगी
मुरझाए होटों पर हंसी, कब वापस आएगा
सलोना बचपन, हर ग़म हर दर्द से दूर
अनजाना खिलखिलाता, बचपन
कभी कभी नानी की कहानी, कभी माँ का वो आँचल
स्वर्ग से ज्यादा हसीन, था मेरा बचपन
एक धुंधली से छवि है, बचपन अब वो तेरी
खोजता जाता हूँ, कहाँ, छिप गया मेरा बचपन
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छिद्रित आत्मा

सीधी सड़क भी -
वक्र लगती है .....
या
वक्र एवं सीधापन
मिल जाता है
अजीब-सी
भ्रमात्मक स्थिति
बन जाती है, जब
रुआं-सा मन
हंस पड़ता है
कोई टीस
कचोट जाती है -
अन्तस से
बूंद-बूंद टपकती पीड़ा
ऐसे
की जैसे
छिद गई हो
आत्मा for more
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क्या वह तुमको रास न आया?
मैने तुमको ख़त भेजा था,
लेकिन कोई जवाब न आया,
क्या वह तुमको रास न आया?
बहुत दिनों के बाद मिले थे,
संबंधों के छंद लिखे थे,
स्मृतियों की सघन छाँव में,
आशाओं के सुमन खिले थे,
बहुत किया विस्तृत खुद को, पर
बाहों में आकाश न आया,
क्या वह तुमको रास न आया?
अवलोकित सपना झूठा था,
चाहत का अंकुर फूटा था,
मन से मन की बात न होती,
अंतस का दर्पण टूटा था,
महफ़िल में हैं बहुत लोग, पर
अपना कोई ख़ास न आया
क्या वह तुमको रास न आया?
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घायल तब-तब संबंध हुए

घायल तब-तब संबंध हुए घायल आँसूं की भाषा में
विरहन मीरा के छंद हुए
बिसरी यादों के गहनों से
मै तुम्हे अलंकृत करता हूँ
जो बीन प्यार की बज न सकी
स्वर देकर झंकृत करता हूँ
जो लिखे प्रीती के पृष्ठों पर
धूमिल सारे अनुबंध हुए
जब-जब टूटे मन के धागे
घायल तब-तब संबंध हुए
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बेवफ़ा तुम ना बनो
बेवफ़ा तुम ना बनो मेरे मुहब्बत की परी,
हमसे रुठी तो सनम मै तो कहा जाऊंगा! तेरी चाहत मे सजाए हुए है मै सपने,
अपने दिल को समझाने कहां जाऊंगा!!
कैसे हमने है बनाए सपनो का महल,
तू अगर लौ को लगाई तो ये जल जाएगा!
उनसे डरना ही था तो प्यार क्यो किया हमसे,
तू अगर डर सी गई प्यार ये मर जाएगा!!
मेरी कविता हो, शमा हो और शाने गजल,
तेरे मुखड़े सी किताबों को पढ़ता ही रहूं!
मेरी चन्दा हो ,साया हो ,दिल की धड़कन,
तेरी नटखट सी अदावों पर मै मरता रहूं!!
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कैसे-कैसे है लोग दुनिया मे

अपना मतलब निकालने के लिए,सारी दुनिया के यार बनते है!! कैसे-कैसे है लोग दुनिया मे..................
मेरे पहलू मे भी एक आया था,जो की मेरा बहुत अजनबी था!
पर मेरे पास मे वो रहते-रहते अब तक मेरा बहुत करीबी था!!
कैसे-कैसे है लोग..............
मुझे ऐसी उम्मीद थी भी नही कि मेरा ऐसा हाल कर देगा!
छोड़कर ऐसी हल मे मुझको ,वो, कोई दुसरा पकड़ लेगा!!
कैसे-कैसे है लोग दुनिया...................
मुझे सन्देह ऐसा होता था, ये मेरे साथ ऐसा कर देगे!
पर मेरे दिल मे ऐसा होता था,ये मुझे रोशनी से भर देगे!!
कैसे-कैसे है लोग दुनिया मे.....................
अब मुझे रोशनी-अधेरे मे फ़र्क महसुस अब तो होने लगा!
अब तो मेरी मौत और ही मुझसे,कैसे ये और दूर होने लगा!!
कैसे-कैसे है लोग दुनिया ..................
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इक ऐसा स्वर्णिम सवेरा होगा
फ़िर न कहीं कोई अँधेरा होगा सूरज उगेगा ऐश्वर्य वैभव का
समृद्धि का घर-घर फेरा होगा
आनंद-उत्सव की होंगी बस्तियां
चमकता हुआ हर चेहरा होगा
विषाद-वेदना जहाँ वर्जित होंगे
प्रहरी सुख प्रमोद का घेरा होगा
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तुम्हारे शहर से जाने का मन है
यहाँ कोई भी तो अपना नहीं है
महक थी अपनी साँसों में,परों में हौसला भी था
तुम्हारे शहर में आये तो हम कुछ ख्वाब लाये थे
जमीं पर दूर तक बिखरे – जले पंखो ! तुम्हीं बोलो
मिलाकर इत्र में भी मित्र कुछ तेजाब ले आये
बड़ा दिल रखते हैं लेकिन हकीकत सिर्फ है इतनी
दिखाने के लिए ही बस ये हर रिश्ता निभाते हैं
कि जब तक काम कोई भी न हो इनको किसी से तो
न मिलने को बुलाते हैं, न मिलने खुद ही आते हैं
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