Monday 29 April 2013

Love Poems

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मेरे कॉलेज की लड़की

अपने ही कॉलेज की लड़की से, मै भी इश्क फरमाता हूँ,
मै कुछ कहूँ तो वो कुछ कह न दे, बस यही सोच घबराता हूँ,
अपने ही कॉलेज की लड़की से ..... चलती है
 जब वो घूम-घूम, हिरनी सी दिखाई देती है,
जब गाए कुछ वो राग-बेराग कोयल-सी सुनाई देती है,
बस यही सोच बिस्तर पर में अंगड़ाई लेता रहता हूँ,
अपने ही कॉलेज की लड़की से .....
घनघोर घटाओं-सी जुल्फें, जब उसकी लहराने लगती हैं,
सावन के मौसम में जैसे, रिम-झिम बूँदें गिर पड़ती हैं,
में भिगोकर खुद को उन बूंदों में, मन-ही-मन गाता जाता हूँ,
अपने ही कॉलेज की लड़की से .....
सामने न हो अगर वो मेरे दर्द तन्हाई देती है,
सामने हो तो कुछ कह न पाने की, उलझन दिखाई देती है,
में कुछ कहूँ भी गर, तो कैसे कहूँ, यही सोच रुक जाता हूँ,
अपने ही कॉलेज की लड़की से .....


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राज गहरे कई

ये फिजाएं खोलती हैं राज गहरे कई
इस कली में बंद हैं नादान भौंरे कई

हम तो आशिक हैं हमारा क्या बहल जाएँगे
आपके दामन पे हैं ये दाग गहरे कई
देर तक खामोश-सी रोटी रही जिंदगी
छूटते हैं जो यहाँ पर थे सहारे कई
इस जहाँ की दौलतें बेकार होने लगीं
हाथ फैलाए खड़े उसके दुआरे कई
जुल्म कितने बढ़ गए आवाज होती नहीं
अब यहाँ रहने लगे गूंगे व  बहरे कई


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किसी की याद में

किसी याद में रोती चली गई
खिज़ां भी बहार होती चली गई उम्र के संग सयानी हुई पीड़
खुद चारागार होती चली गई

फूल की उम्र ज्यों आई करीब
कलियाँ करार खोती चली गयी

इन अंधेरों को पनाह दे कर
रात बदनाम होती चली गई

बोझ ग़रीब के मूलो-सूद का
कई पीढियां ढोती चली गई

क़ाबे-काशी को शक्ल देने में
इंसानियत खोती चली गई

दिल में बेदार हुई जब उम्मीद
नाउम्मीदी सोती चली गई

टीस की सूई दे गया कोई
आँखें लड़ियाँ पिरोती चली गई

पहाड़ों के पीहर से बिछड़ नदी
पिया समंदर की होती चली गई

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संगम की धारा हो जाएं

मर्यादा के बंध छोड़कर
सारे ही अनुबंध तोड़कर कुछ आंसू बह रहे तुम्हारे
कुछ आंसू बह रहे हमारे
दोनों के आंसू मिलकर के
एक नया इतिहास बनाएं
इतने पावन बनें की जैसे
संगम की धारा हो जाएं

आँखें तो आंसू की गागर
करुणा का जिसमे सागर है
आँसू से अभिसिंचित होता
भावों का आखर-आखर है
अपमानित कर दिया अगर तो
आँसू अंगारा हो जाएँ
इतने पावन बनें की जैसे
संगम की धारा हो जाएं

आँसू कभी बाहें सबरी के
आंसू कभी बहाए मीरा
आंसू में ही प्रेम उमड़ता
आंसू में रह रहा कबीरा
मिलें प्यार के शिलाखंड तो
ये आँसू गारा हो जाएं
इतने पावन बनें की जैसे
संगम की धारा हो जाएं

कभी देवकी के आँसू ने
भेजा यहाँ सुदर्शन धारी
सोने की लंका पर जैसे
सीता के थे आंसू भारी
कभी बहें ये चुपके-चुपके
या फिर बंजारा हो जाएँ
इतने पावन बनें की जैसे
संगम की धारा हो जाएं
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तुमसे मिलकर

तुमसे मिलकर जीने की चाहत जागी
प्यार तुम्हारा पाकर ख़द से प्यार हुआ
तुम औरों से कब हो,तुमने पल भर में
मन के सन्नाटों का मतलब जान लिया
जितना मैं अब तक ख़द से अन्जान रहा
तुमने वो सब पल भर में पहचान लिया
मुझपर भी कोई अपना ह्क़ रखता है
यह अहसास मुझे भी पहली बार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़द से प्यार हुआ
ऐसा नहीं कि सपन नहीं थे आँखों में
लेकिन वो जगने से पहले मुरझाए
अब तक कितने ही सम्बन्ध जिए मैंने
लकिन वो सब मन को सींच नहीं पाये
भाग्य जगा है मेरी हर प्यास क
तप्ति के हाथों ही खुद सतकार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़द से प्यार हुआ
दिल कहता है तुम पर आकर ठहर गई
मेरी हर मजबूरी, मेरी हर भटकन
दिल के तारों को झंकार मिली तुमसे
गीत तुम्हारे गाती है दिल की धड़कन
जिस दिल पर अधिकार कभी मैं रखता था
उस दिल क हाथों ही अब लाचार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर खुद से प्यार हुआ
बहकी हुई हवाओं ने मेरे पथ पर
दूर-दूर तक चंदन-गंध बिखेरी है
भाग्य देव ने स्वयं उतरकर धरती पर
मेरे हाथ में रेखा नई उकेरी है
मेरी हर इक रात महकती है अब तो
मेरा हर दिन जैसे इक त्यौहार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर खुद से प्यार हुआ
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एक कोना खाली दिल का मेरे

एक कोना खाली दिल का मेरे,
याद तुझे फिर करता है तेरी मंद-मंद मुस्कानों पर,
दिल मेरा आज भी मरता है,
तेरी शोख अदाओं की चुहिया,
दिल आज भी तारीफ़ करता है,
तेरे इतराने इठलाने पर,
दिल बाग़-बाग़ हो उठता है,
बुलबुल सी तेरी चहक हो ही,
सुनने को दिल तरसता है,
दौड़ के आकर लगना गले,
और धीरे से कहना 'पापा'
फिर चूमना मेरे गालों को,
और आँखों से शरारत करना,
अब कब ये सपना सच होगा,
इंतजार दीवाना करता है,
चिपक के सीने से मेरे,
तेरा सपनों में खो जाना,
पर आज इन काली रातों में,
दिल हर पल धड़कन गिनता है,
तेरे नाजुक नाजुक हाथों से,
गालों को सहलाना मेरे,
तेरे छोटे छोटे हाथों को,
फिर चूमने को दिल करता है,
कहाँ खो गई मेरी चिड़िया,
दिल तुझ से मिलने को करता है,
एक कोना खाली दिल का मेरे,
याद तुझे फिर करता है .....


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क्या कहता

खुदा जाने में क्या होता, जो कहता में क्या होता,
सही के लिए क्या कहता, गलत के लिए क्या कहता,
रहती है दूर क्या कहता, मिलने को ही क्या कहता,
मिलते रहना ही क्या कहना, क्या है दिल में क्या कहता,
सूरज और चंदा क्या कहता, दोनों का वीरा क्या कहता,
तेरे संग दिन क्या कहता, तेरे संग रातें क्या कहता,
तुझ बिन जीवन क्या कहता, तुझ बिन मौसम क्या कहता,
तुझ बिन तारें क्या कहता, तुझ बिन इतवारें क्या कहता,
तेरे जाने पर क्या कहता, तेरे आने पर क्या कहता,
पूरब से पश्चिम क्या कहता, उत्तर से दक्षिण  क्या कहता,
आखिरी कदम है क्या कहता, जीवन मरण है क्या कहता,
जन्नत से पृथ्वी क्या कहता, मौला और चिश्ती क्या कहता,
लोग और जगहें क्या कहता, यादें और बातें क्या कहता,
हंसी मजाक जब क्या कहता, हृदय वेदना अब क्या कहता,
तुझसे कहने को क्या कहता, तुझसे सुनने को क्या कहता,
कहता तो बस कहता रहता, 'निर्जन' दिल से दिल कहता है .....



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बिन घरनी घर भूत का डेरा

बिन घरनी घर, भूत का डेरा,
ये झूठ नही, सच्चाई है ।
पत्नी के घर मे, नही रहने से,
तो उसकी याद ,बहुत ही सताती है ॥
पति-पत्नी मे होते तकरार बहुत,
इससे रिश्तों मे ,प्यार और बढ़ता है ।
तू-तू ,मै-मै, जब होता है कभी,
तो आदमी, प्यार और करता है ॥

सच माने तो वह केवल ,पत्नी ही नही,
वो हमारे जीवन की ,अधिकारी है ।
रखती है हमारा, ध्यान सदा,
हम भी उसके, आभारी हैं ॥

ये भी कभी भी, न भुलें,
कि उसकी रूप की, तीन निशानी है ।
सुबह मां और दिन मे है बहन ,
और रात को वो, दिलजानी है ॥

पर गृहिणी यदि, समझदार मिली,
तो उस घर मे, खुशियां ही खुशियां हैं ।
पर कहीं अगर, दुखदायी सी मिली,
तो वहां बस दुख की ही, केवल बगिया  है ॥

बिन घरनी घर, भूत का डेरा....
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तुम्हारी आँखों में

जिस्म पर उभरी लकीरें
गवाह हैं
उन रास्तों की
जिनसे होकर गुजरा हूँ
और बार-बार
असफल
फिर फिर लौटा हूँ
तुम्हारे पास
याचना के लिए
प्रेम की छाँव की

अपने दंभ में
आगे निकल जाता हूँ
तुम्हें पीछे छोड़
लेकिन
वक्त से टकराकर
लौटना पड़ता है
तुम्हारे पास
ऊँगली थामने
यूँ ही नही गुजरा वक्त
यूँ ही नही उभरी लकीरें
चेहरे पर
शरीर पर
ये गवाह हैं
उन पलों की
जब तुमने थामा है
मेरा हाथ
जो कांपने लगे थे पाँव
तुम हमेशा ही
एक उम्मीद थी
मै ही आँख मूंद रहा
अपने सपनों से
जो हमेशा तैरते रहे
तुम्हारी आँखों में
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जब यह दुनिया सो जाती है

शायद तुम से पूर्व जनम का
मेरा कोई नाता होगा इसीलिए तुमसे मिलने पर
मन में हलचल हो जाती है
मै रातों को तब जगता हूँ
जब यह दुनिया सो जाती है
दिल के काग़ज पर मोती-सा
अक्षर-अक्षर तुम्हें लिखा है
हर मात्रा में याद तुम्हारी
शब्दों में मकरंद दिखा है
तन के विंध्याचल को जैसे
प्रीति हिलोर भिगो जाती है
मै रातों को तब जगता हूँ
जब यह दुनिया सो जाती है
होठ गुलाबी, नयन शराबी
पलकों पर सपना सोता है
तुमसे वह रिश्ता है जो
सरिता का सागर से होता है
मेरा आँगन दिवस अमावस
धवल चाँदनी धो जाती है
मै रातों को तब जगता हूँ
जब यह दुनिया सो जाती है
गंध तुम्हारी अंतस मन को
रोज बाबरी कर देती है
यादों की ज्यों धुप गुनगुनी
देह सांवरी कर देती है
साँसों की श्यामल माला में
राधा छंद पिरो जाती है
मै रातों को तब जगता हूँ
जब यह दुनिया सो जाती है
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काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा

पहले मन में पीड़ा जागी
फिर भाव जगे मन-आँगन में जब आँगन छोटा लगा उसे
कुछ ऐसे सँवर गई पीड़ा
क़ागज़ पर उतर गई पीड़ा…
जाने-पहचाने चेहरों ने
जब बिना दोष उजियारों का
रिश्ता अँधियारों से जोड़ा
जब क़समें खानेवालों ने
अपना बतलाने वालों ने
दिल क दरपन पल-पल तोड़ा
टूटे दिल को समझाने को
मुश्किल में साथ निभाने को
छोड़ के सारे ज़माने को
हर हद से गुज़र गई पीड़ा…
ये चाँद सितारे और अम्बर
पहले अपने-से लगे मगर
फिर धीरे-धीरे पहचाने
ये धन-वैभव, ये किर्ति-शिखर
पहले अपने- से लगे मगर
फिर ये भी निकले बेगाने
फिर मन का सूनापन हरने
और सारा ख़ालीपन भरने
ममतामयी आँचल को लेकर
अन्तस में ठहर गई पीड़ा
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा…
कुछ ख़्वाब पले जब आँखों में
बेगानों तक का प्यार मिला
यूँ लगा कि ये संसार मिला
जब आँसूं छ्लके आँखों से
अपनों तक से प्रतिकार मिला
चुप रहने का अधिकार मिला
फिर ख़ुद में इक विशवास मिला
कुछ होने का अहसास मिला
फिर एक खुला आकाश मिला
तारों-सी बिखर गई पीड़ा
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा…
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प्रिय ऐसा करुण राग छेड़

प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये मन का कोना कोना दु:खमय सागर सा भर आये बार-बार
रो पड़े आँख रिमझिम सावन सी ढुलक -ढुलक जार -जार
आनंदमय छंद, गीत ,गंध का जीवन प्रवाह भी आज ठहर जाए
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
दहकती हुई रेत के मन सांस में सावन कि व्याकुलता भर दो
रात कि गुनगुनाती हुई चांदनी पर ,सुबकती हुई वेदना धर दो
नाचती उषा के घुँघरूओं कि धुन भी टूट कर बिखर जाये
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
अनमनी हो जाये दूज के चाँद की पहली अछूती वो तरुण किरण
बासंती मेघ के प्रथम स्पर्श को दे दिया जिसने अपना जीवन
छेड़ो वो प्रथम प्रणय स्पन्दन के विकल उददगार कि दिल भर आये
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
जल जाये अंतस कि आग से ,रोमंचित ,स्निग्ध ,मधुर ,मंद पवन
भेंटने नभ से चल पड़े तृषित वसुंधरा का करुण, व्यथित मन
पौंछने कुमुदनी के ढलकते आंसू ,चाँद भी आज जमीं पर उतर आये
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
सुनकर विरह का तान पपीहा भी गाने लगे पिहु-पिहु के गान
सुबक उठे तिमिर के वक्ष पर सोयी बेखबर यामिनी के मन प्राण
आद्र हो जाये गगन के तारे,हर दिशा कि आँख झर जाए
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये

Sunday 28 April 2013

Sad poems

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अनजान रहा अक्सर


दीदार का बस तेरे ईमान रहा अक्सर 

इस प्यार से मेरे तू अनजान रहा अक्सर

बाजार में दुनिया के हर चीज तो मिलती है 

तेरे हबीबों में भी धनवान रहा अक्सर

जिस वक्त दुनिया में था घनघोर कहर बरपा 

उस वक्त भी रौशन ये शमशान रहा अक्सर

हर ओर इन गलियों में इक शोर सा मचता है 

हाकिम का ही तो यह भी एहसान रहा अक्सर

मेरी मुरादों ने अपना रूप बदल डाला 

ईमान के  में नुकसान रहा अक्सर
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आँखों में


बता ये कौनसा गम इज़्तराब है तेरी आँखों में


ज़रूर कोई अधूरा ख्वाब है तेरी आँखों में
 क्यों कतरा-ऐ शबनम छलकाती रहती हैं हर वक्त
हो न हो कोई चेहरा गुलाब है तेरी आँखों में


जाने क्यों चाँद को भी नहीं देखा करते हो आजकल

यकीनन कोई दूजा महताब है तेरी आँखों में 

लाख तैरना आये चाहे किसीको वो डूब जाएगा

दर्दो -गम का इक ऐसा गिर्दाब है तेरी आँखों में

नहीं पूछेंगे कैसे काटी तुमने इंतज़ार में उम्र 

हर इक लम्हे का ज़वाब है तेरी आँखों में
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रीत गए हैं प्रीत भरे पतीले

उलट गई है संस्कारों की थाली मन-मटके में नहीं भावों का पानी

आदर्शों का डिब्बा खाली-खाली

बासी हुई सुगंध सम्बन्धों की

रिश्ते हुए हैं ज़हर की प्याली

पावन नही रही अग्नि चूल्हे की

कुंठा के धुएं से घर-दीवारें काली

आँखें मुस्काती कुटिल मुस्काने

मुख का अभिवादन बन गाया गली

बिखरी आदर -सत्कारों की रंगोली

टूट गई मान मनुहारों की डाली

पेड़ों पर लोभ लालच की अमराई

उगी फ़सलो पर ग़द्दारी की बाली

विकसी दूषित विचारों की फुलवारी

फ़ैली पाप अधम की हरियाली

दया करुना के पक्षी न आ पते अन्दर

छल -कपट बन गया मन का माली

वासनाओं से भरा भौंरों का गुंजन

तितलियों मुख नहीं लाज़ की लाली

कच्चे पड़ गये प्रण के पत्थर

ढह गई इमारतें मिसालों वाली

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मेरा बचपन

जीवन की पथरीली, राहों में चलते चलते
जीवन की सुलगती, आग में जलते जलते
जीवन की कंटीली, चुभन में घुटते घुटते
याद आती है, सुकोमल बचपन की
कर्तव्यों की बेड़ी में, जकड़े जीवन में
याद आती है, उस स्वछंदता की
सुकोमल स्वच्छ बचपन, सुगंधों से भरा बचपन
पाप, पुण्य से मुक्त बचपन, अब घिर गया है अनेक
समस्याओं में जीवन, साँसों की डोर जुड़ गई
अश्रु की लड़ी में, हे ईश्वर! कब टूटेगी
ये अश्रु की लड़ी, हे ईश्वर! कब छूटेगी
ये दुखों की झड़ी, हे ईश्वर! कब फूटेगी
मुरझाए होटों पर हंसी, कब वापस आएगा
सलोना बचपन, हर ग़म हर दर्द से दूर
अनजाना खिलखिलाता, बचपन
कभी कभी नानी की कहानी, कभी माँ का वो आँचल
स्वर्ग से ज्यादा हसीन, था मेरा बचपन
एक धुंधली से छवि है, बचपन अब वो तेरी
खोजता जाता हूँ, कहाँ, छिप गया मेरा बचपन
                                             for more
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छिद्रित आत्मा

जीवन की विषम राहों पर
सीधी सड़क भी -
वक्र लगती है .....
 या
वक्र एवं सीधापन
मिल जाता है
अजीब-सी
भ्रमात्मक स्थिति
बन जाती है, जब
रुआं-सा मन
हंस पड़ता है
कोई टीस
कचोट जाती है -
अन्तस से
बूंद-बूंद टपकती पीड़ा
ऐसे
की जैसे
छिद गई हो
आत्मा                                            for more

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क्या वह तुमको रास न आया?

मैने तुमको ख़त भेजा था,
लेकिन कोई जवाब न आया,
क्या वह तुमको रास न आया?
बहुत दिनों के बाद मिले थे,
संबंधों के छंद लिखे थे,
स्मृतियों की सघन छाँव में,
आशाओं के सुमन खिले थे,
बहुत किया विस्तृत खुद को, पर
बाहों में आकाश न आया,
क्या वह तुमको रास न आया?
अवलोकित सपना झूठा था,
चाहत का अंकुर फूटा था,
मन से मन की बात न होती,
अंतस का दर्पण टूटा था,
महफ़िल में हैं बहुत लोग, पर
अपना कोई ख़ास न आया
क्या वह तुमको रास न आया?
                                        for more
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घायल तब-तब संबंध हुए

जब-जब टूटे मन के धागे
घायल तब-तब संबंध हुए घायल आँसूं की भाषा में
विरहन मीरा के छंद हुए
बिसरी यादों के गहनों से
मै तुम्हे अलंकृत करता हूँ
जो बीन प्यार की बज न सकी
स्वर देकर झंकृत करता हूँ
जो लिखे प्रीती के पृष्ठों पर
धूमिल सारे अनुबंध हुए
जब-जब टूटे मन के धागे
घायल तब-तब संबंध हुए
                        for more


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बेवफ़ा तुम ना बनो

बेवफ़ा तुम ना बनो मेरे मुहब्बत की परी,
हमसे रुठी तो सनम मै तो कहा जाऊंगा! तेरी चाहत मे सजाए हुए है मै सपने,
अपने दिल को समझाने कहां जाऊंगा!!

कैसे हमने है बनाए सपनो का महल,
तू अगर लौ को लगाई तो ये जल जाएगा!
उनसे डरना ही था तो प्यार क्यो किया हमसे,
तू अगर डर सी गई प्यार ये मर जाएगा!!

मेरी कविता हो, शमा हो और शाने गजल,
तेरे मुखड़े सी किताबों को पढ़ता ही रहूं!
मेरी चन्दा हो ,साया हो ,दिल की धड़कन,
तेरी नटखट सी अदावों पर मै मरता रहूं!!
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कैसे-कैसे है लोग दुनिया मे

कैसे-कैसे है लोग दुनिया मे ,जो की झुठे ही प्यार करते है!
अपना मतलब निकालने के लिए,सारी दुनिया के यार बनते है!! कैसे-कैसे है लोग दुनिया मे..................
मेरे पहलू मे भी एक आया था,जो की मेरा बहुत अजनबी था!
पर मेरे पास मे वो रहते-रहते अब तक मेरा बहुत करीबी था!!
कैसे-कैसे है लोग..............
मुझे ऐसी उम्मीद थी भी नही कि मेरा ऐसा हाल कर देगा!
छोड़कर  ऐसी हल मे मुझको ,वो, कोई दुसरा पकड़ लेगा!!
कैसे-कैसे है लोग दुनिया...................
मुझे सन्देह ऐसा होता था, ये मेरे साथ ऐसा कर देगे!
पर मेरे दिल मे ऐसा होता था,ये मुझे रोशनी से भर देगे!!
कैसे-कैसे है लोग दुनिया मे.....................
अब मुझे रोशनी-अधेरे मे फ़र्क महसुस अब तो होने लगा!
अब तो मेरी मौत और ही मुझसे,कैसे ये और दूर होने लगा!!
कैसे-कैसे है लोग दुनिया ..................
                                                      for more

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इक ऐसा स्वर्णिम सवेरा होगा
फ़िर न कहीं कोई अँधेरा होगा सूरज उगेगा ऐश्वर्य वैभव का
समृद्धि का घर-घर फेरा होगा

आनंद-उत्सव की होंगी बस्तियां
चमकता हुआ हर चेहरा होगा

विषाद-वेदना जहाँ वर्जित होंगे
प्रहरी सुख प्रमोद का घेरा होगा
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तुम्हारे शहर से जाने का मन है
यहाँ कोई भी तो अपना नहीं है
महक थी अपनी साँसों में,परों में हौसला भी था
तुम्हारे शहर में आये तो हम कुछ ख्वाब लाये थे
जमीं पर दूर तक बिखरे – जले पंखो ! तुम्हीं बोलो
मिलाकर इत्र में भी मित्र कुछ तेजाब ले आये
बड़ा दिल रखते हैं लेकिन हकीकत सिर्फ है इतनी
दिखाने के लिए ही बस ये हर रिश्ता निभाते हैं
कि जब तक काम कोई भी न हो इनको किसी से तो
न मिलने को बुलाते हैं, न मिलने खुद ही आते हैं
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Sunday 21 April 2013

Directly as a Make-up New Trend Jewelry

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Directly as a make-up makeup new trend jewelry
Makeup artist who is tired of the to juggle in color and texture , and this time , they direct the jewelry as a make-up onto the model's face . Chanel colorful ore to nature for inspiration , decorate beads , crystal ore embroidered patch made in eyebrows , bushy eyebrows glitz . This is a new interpretation of the iconic 1960s bohemian makeup : the models' eyebrows and

eyes lined with mirror patch , coupled with the the exaggerated blue and white double eye color ,very psychedelic style . Makeup artist Kabuki makeup helm Jeremy Scott fluorescence eyebrows affixed to the arc-shaped side affixed to the forehead and eyes of the model , colorful , highly saturated colors people feel like being in a bustling rave party . In addition , the Corrie Nielsen models face side geometric lace patch decoration , makeup like a the midnight ball of Kamen  mysterious and gorgeous.  click here

Forecast the 2013 Spring and Summer Fashion Show from the T Station

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Forecast the 2013 spring and summer fashion show from the T station

Although we are also living in the winter, the warm spring is not far away. In order to not rush, we must know in advance the 2013 spring and summer fashion trends and elements. Until the advent of spring and summer to become the most watched flappers Fringe elements or will become one of the most popular elements of 2013. Classic black and white, generally will not wear an error combined into the zebra stripes once more popular sense. Seen in the spring and summer of 2013, we have in many shows including Dolce & Cabana, Marc Jacobs, Ralph Lauren, fringe elements. The beauty of the girls, and quickly add to your wardrobe a striped single product! click here

The Make-up Large Tracts of View for 2013 Trend, Do You Want It?

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The make-up large tracts of view for 2013 trend, do you want it?
The arrival of 2013, the brand has been after another released their 2013 spring brand new
cosmetics line and flagship makeup, the 2013 makeup flu design widely used pink , while

renewing eye-catching shades , despite the spring and summer , the flagship of the blue eye
makeup has always been not the Asian woman dishes , but that in the era of pop art trend has
not taboo2013 spring makeup keywords: Pure bare bottom tender mists lip 3. Sweet blush
On behalf of the brand: Chanel, Dior, Jill Stuart
Pure bare bottom : to create skin thoroughly after attaining white muscle , in line with a wide
range of color and nude makeup effects needs further to create a pure perfect Sekkisei bring
amazing - looking , supple and flawless through the white muscle just like born
The tender mists lip: lip also use the saturated n pink shiny lipstick, quite looking forward to this
series of pink lipstick, coral and hot pink lit breathtaking atmosphere, the color was perfect
coverage lip color effect.
The sweet blush: pink great variability, from soft ballet pink to saturated hot pink, convey the
message will be completely different! The makeup design created more charm and fascinating
overall makeup style. click here

The Small Matter of Clever Creative DIY Bridge Wedding

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The small matter of clever creative DIY bride wedding
If you own DIY objects on the wedding , will give guests bring a lot of surprises , and also allows
guests to feel respected . To spend money to buy any items in the printing font flying era , DIY
items is particularly valuable. Bride as a clever mind , we must try to DIY an article on their
wedding




Art Candlestick DIY
Art candlesticks inspired by natural flowers . Like handmade elf . Let them shine on your wedding !
Shades of tone gradient and accompanied by a lengthy candlelight create a romantic and
mysterious atmosphere . Smart bride to see that production is actually very simple READ MORE click here

Lipstick Could Be Slowly Poisoning You

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Lipstick is a cosmetic product and its use for the purpose of beautification and makeup is centuries old. That's why the word lipstick is part of many folk tales and traditional phrases of many languages. Some of the examples include: The phrase “lipstick on his collar” is a euphemism to describe a man who is cheating on his partner. A “lipstick lesbian” is a gay or bisexual woman who exhibits feminine gender attributes. The alliterative term is thought to have come into common usage during the 1980s in order to distinguish between lesbians who adhere to more conventional gender roles and those who do not. In some contexts, it has pejorative connotations. “Lippy” is a British colloquialism for lipstick, particularly in Northern England.  The phrase “lipstick on a pig” is a euphemism for unsuccessfully attempting to make attractive something (or some idea) that is inherently unattractive. READ MORE click here